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ज्योतिषशास्त्र: शनि के दोष दुर करने के लिए क्या करना चाहिए?

ये एक महत्वपूर्ण सवाल है-


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शनि कालपुरूष कुंडली में दशम और एकादश भाव के स्वामी हैं। कुंडली के हर दुःस्थान के कारक हैं।अगर परम पिता ना चाहते तो वह आपको शनि के प्रभाव को देते ही नहीं।

शनि दशम भाव में कार्य के कारक हैं। कर्म के कारक हैं। इस लिए शनि को सबसे ज़्यादा सही आप कर्म से ही कर सकते हैं।

अगर आप पौराणिक कथाओं की सहायता से समझें, तो शनि सूर्य के पुत्र हैं। सूर्य की पत्नी संजना हैं। मगर शनि छाया और सूर्य के पुत्र हैं।इस बात का सही अर्थ समझने की कोशिश करें तो- सूर्य की रौशनी हम सभी के लिए अच्छी है मगर सुबह लगभग साढ़े आठ बजे तक, ज़्यादा से ज़्यादा १० बजे तक। इस समय तक सूर्य की रौशनी अनुकूल है। संजना शब्द का अर्थ है अनुकूलता।इसलिए सूर्य की पत्नी संजना है। इसके बाद आहिस्ता आहिस्ता सूर्य की परिस्थिति क्रूर होती जाती है।और इस क्रूरता को संजना सहन नहीं कर पाती और चली जाती हैं। मगर जाने से पहले वह अपने जैसी एक प्रतिरूप तैयार करती हैं।संध्या। जो देखने में उनके जैसी ही हैं। जिस तरह भोर के समय आकाश की परिस्थिति होती है, लगभग वैसी ही दिखती है संध्या के समय।सूर्य ये नहीं समझते और छाया से समागम करते हैं, और शनि पैदा होते हैं।मतलब संध्या में सूर्य अस्त होते हैं और फिर अंधेरा होने लगता है। फिर रात हो जाती है। तो पहले राहु आते हैं और फिर शनि।शनि रात्रि के कारक हैं।

शनि को जब सूर्य स्वीकार नहीं करते तो शनि महादेव की आराधना कर उनसे वर चाहते हैं की उन्हें सूर्य से भी बलवान किया जाए।लेकिन महादेव उनसे कहते हैं की ऐसा नहीं हो सकता मगर शनि सूर्य जितना ही बलवान होंगे।इसे आप ऐसे समझ सकते हैं की सूर्य जहां होते हैं तो दिन होता है, मगर वह सिर्फ़ आंशिक ही होता है।बाक़ी के भाग में शनि का राज यानि रात्रि होता है। अब आप समझ सकते हैं, की वह सूर्य जितने ही शक्तिशाली हैं।

आप ये समझ सकते हैं की सूर्य जितना शक्तिशाली होने के बाद भी, आप पुरी तरह शक्तिशाली नहीं हो सकते।

अगर आप - कर्मठ हैं, न्याय-परायण हैं, झुठ नहीं कहते, समय से अपना काम करते हैं, अपना वचन निभाते हैं, झूठे वायदे नहीं करते, सोच समझकर बातें करते हैं, जो कहते हैं उस पर टिकते हैं, साफ़ सफ़ाई रखते हैं, अपने से गरीब, अपने कर्मचारियों का हक़ नहीं मारते, उनके साथ बुरा बर्ताव नहीं करते, नियमों का पालन करते हैं, तो आपका शनि अच्छा होगा, मगर समय के साथ साथ। शनि मंथर हैं।उनके पास शीघ्रता का कोई काम नहीं है। धैर्य का है। आप सब कुछ सही करके भी अगर तुरंत फल चाहते हैं, तो यह शनि के विपरीत है।

शनि मंत्र से ज़्यादा कर्म से ही प्रसन्न होते हैं। दायित्व से प्रसन्न होते हैं।इसलिए वह शरीर में उन अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पुरे शरीर को खड़ा रखते हैं। अब आप समझ सकते हैं चलना, कार्य करना, अनुशासन में रहना, नियमों का पालन करना, सत्यता धारण करना, सही ना होने तक बार बार कोशिश करना, साफ़ सफ़ाई रखना ही शनि को सही करने का तरीक़ा है।

अब ये तो किसी पत्री को देखकर, बाक़ी के ग्रह, दशा, गोचर, शनि की अवस्था को समझकर, व्यक्ति की स्थान काल पात्रता को समझकर ही बताया जा सकता है की किसी व्यक्ति विशेष को क्या करना चाहिए।

 
 
 

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