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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दग्ध राशि क्या है?


ज्योतिष शास्त्र दग्ध राशि
ज्योतिष शास्त्र दग्ध राशि


भारतीय वैदिक ज्योतिष में किसी भी विषय या व्यक्ति के जीवन के अध्ययन के लिए विभिन्न ज्योतिषीय विषयों का समावेश किया गया है। एक व्यक्ति के जन्म के वार, तिथि, नक्षत्र आदि के संयोग से भी भविष्य कथन किया जाता है। वार, तिथि या नक्षत्र हर विषय का अपना अलग फल कथन है। लेकिन इन तीनों के समावेश से, अथवा इन में से दो के समावेश से भी कुछ बहुत अच्छे और कुछ बहुत बुरे योग बनते हैं। ऐसे ही संयोग में से एक है दग्ध योग और दग्ध राशि।


ज्योतिष शास्त्र में दग्ध राशि क्या है?


किसी भी व्यक्ति के जन्म कि तिथी के अनुसार दो राशियाँ दग्ध राशि होती है। आप किसी के जन्म तिथि से ही जान सकते हैं की उस जातक के जीवन में कौनसी दो राशियां चुनौतीपूर्ण होंगी। अगर आप जातक का लग्न राशि भी जानते हैं, तो आप सहज ही समझ सकते हैं की जातक जीवन के कौनसे विषयों में चुनौतीयों का सामना करता है। भविष्य-कथन ज्योतिष में जन्म का वैदिक दिन, तिथि और नक्षत्र महत्वपूर्ण माने जाते है। तिथि ज्योतिष में एक विशिष्ट भूमिका निभाती है, हालांकि अधिकांश वैदिक ज्योतिषी इसे भविष्यवाणी करते समय नजरअंदाज कर देते हैं। शुक्ल पक्ष की 14 तिथियाँ और कृष्ण पक्ष की 14 तिथियाँ होती हैं, इस प्रकार कुल 28 तिथियाँ होती हैं। चूँकि एक तिथि पूर्णिमा और एक अमावस्या होती है, इसलिए कुल 30 तिथियाँ होती हैं और ये 30 तिथियाँ मिलकर एक चंद्र मास बनाती हैं।

दग्ध राशि कैसे निर्धारित होती हैं

पहली तिथि को प्रतिपदा और अंतिम तिथि को चतुर्दशी कहते हैं, पूर्णिमा और अमावस्या को छोड़कर। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी, पूर्णिमा या अमावस्या में होता है। प्रत्येक तिथि पर दो राशियों को दग्ध राशि का नाम दिया गया है, और चतुर्दशी पर चार राशियाँ दग्ध राशियों की सूची में आती हैं। पूर्णिमा और अमावस्या को कोई भी राशि दग्ध राशि नहीं मानी जाती। दग्ध का सटीक अर्थ स्पष्ट तौर पर कुछ ऐसा जो अपना गुण खो चुका है।जो अपना सही फल देने में असमर्थ है।ये दग्ध राशियाँ विशिष्ट परिस्थितियों में या तो उत्कृष्ट या सबसे खराब परिणाम देती हैं।

यह हमेशा अच्छा होता है यदि दग्ध राशि त्रिक भाव (6, 8, 12) में होती है, क्योंकि नकारात्मक भाव-घर में नकारात्मक राशि अच्छे परिणाम देती है। यदि दग्ध राशि किसी शुभ भाव में होती है, तो संबंधित भाव-घर के अच्छे गुणों का क्षय होना निश्चित है।

सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर, प्रत्येक ग्रह के पास दो राशियों का स्वामित्व होता है, और तिथि अनुसार जो राशि दग्ध होती है, उसी राशि को दग्ध होने का दोष लगता है, न कि उसी ग्रह के स्वामित्व वाली अन्य राशि को। लेकिन दग्ध राशि का स्वामी जहाँ जिस अच्छे योग का हिस्सा बनता है वहाँ कमज़ोरी लाता है।

यदि कोई शुभ ग्रह वक्री अवस्था में दग्ध राशि में स्थित हो, तो वह अपनी दशा या अंतर्दशा में अच्छे परिणाम देगा। लेकिन यदि वह शुभ ग्रह मार्गी अवस्था में हो, तो वह अपनी दशा या अंतर्दशा में बुरे परिणाम देगा।

यदि कोई पाप ग्रह दग्ध राशि में स्थित है, लेकिन मार्गी चाल में है, तो वह अपनी दशा और अंतर्दशा के दौरान अच्छे परिणाम देगा। लेकिन यदि यह पाप ग्रह वक्री है, तो यह अपनी दशा और अंतर्दशा के दौरान बुरे परिणाम देगा। उल्लेखनीय है की आप इन नियमों को ग्रह गोचर के दौरान तथा दशा परिवर्तन के समय भी प्रतिफलित होते देख सकते हैं।

चूँकि राहु और केतु (छायाग्रह) की चलन हमेशा वक्री होती है और ये कभी भी मार्गी चलन में नहीं चलते हैं, इसलिए इन दोनों ग्रहों का दग्ध राशि में स्थित होना हमेशा उनकी दशा और अंतर्दशा के दौरान अच्छे परिणाम देते हैं।राहु केतु के मुकाबले बेहतर परिणाम देते हैं।

यदि किसी दग्ध राशि में दो ग्रह हों, एक शुभ और दूसरा पापी हो, तथा पापी ग्रह मार्गी हो जबकि शुभ ग्रह वक्री हो, तो ऐसी स्थिति में शुभ ग्रह की अंतर्दशा, पापी ग्रह की महादशा के दौरान अच्छे परिणाम देती है। यदि शुभ ग्रह वक्री हो तथा पापी ग्रह मार्गी हो, तो पापी ग्रह की महादशा अच्छे परिणाम देगी, लेकिन शुभ ग्रह की अंतर्दशा के दौरान बुरे परिणाम मिलेंगे, और इसके विपरीत परिस्थिति होने पर, विपरित परिणाम भी प्रत्यक्ष होंगे।

सूर्य और चंद्रमा हमेशा मार्गी होते हैं, सीधी गति में चलते है, तथा प्रकाश-कारक हैं इसलिए उन्हें उपरोक्त नियमों से छूट दी गई है।उनकी राशियां अगर दग्ध हैं तो वह दग्ध राशि का फल ही देंगे लेकिन यह ग्रह दग्ध राशि के स्वामी होने का दोष वहन नहीं करते।


प्रत्येक तिथि के आधार पर दग्ध राशियाँ निर्धारित होती हैं:

  1. प्रथमा तिथि - तुला और मकर

  2. द्वितीया तिथि - धनु और मीन

  3. तृतीया तिथि - सिंह और मकर

  4. चतुर्थी तिथि - वृषभ और कुंभ

  5. पंचमी तिथि - मिथुन और कन्या

  6. षष्ठी तिथि - मेष और सिंह

  7. सप्तमी तिथि - कर्क और धनु

  8. अष्टमी तिथि - मिथुन और कन्या

  9. नवमी तिथि - सिंह और वृश्चिक

  10. दशमी तिथि - सिंह और वृश्चिक

  11. एकादशी तिथि - धनु और मीन

  12. द्वादशी तिथि - तुला और मकर

  13. त्रयोदशी तिथि - वृषभ और सिंह

  14. चतुर्दशी तिथि - मिथुन, कन्या, धनु , मीन

  15. पूर्णिमा तिथि - कोई राशि दग्ध नहीं होता

  16. अमावस्या तिथि - कोई राशि दग्ध नहीं होता


तिथि जलतत्व का कारक है। दिन अग्नि तत्व का कारक और नक्षत्र वायु तत्व का। इस विषय में विस्तार से भविष्य में लिखा जाएगा।

दग्ध योग - दिन और नक्षत्र का संयोग:

  1. रविवार को भरणी

  2. सोमवार को चित्रा

  3. मंगलवार को उत्तराषाढ़ा

  4. बुधवार को दानिश्ता

  5. गुरुवार को उत्तराफाल्गुनी

  6. शुक्रवार को ज्येष्ठा

  7. शनिवार को रेवती


दग्ध योग - दिन और तिथि का संयोग:

वैदिक दिन और तिथि के संयोजन से दग्ध योग निर्माण होता है

  1. रविवार और 12वीं तिथि

  2. सोमवार और 11वीं तिथि

  3. मंगलवार और 5वीं तिथि

  4. बुधवार और 3rd तिथि

  5. गुरुवार और 6th तिथि

  6. शुक्रवार और 8वीं तिथि

  7. शनिवार और 9वीं तिथि

अगर आप अपनी कुंडली के विषय में जानना चाहते हैं, कुंडली का विश्लेषण करना चाहते हैं, तो संपर्क करें।


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